त्रियेक परमेश्वर के बीच में ईश्वरीय एकता।

 



त्रियेक परमेश्वर के बीच में ईश्वरीय एकता का क्या मतलब है?


 ईश्वरीय एकता


ईश्वरीय एकता का अर्थ है कि परमेश्वर हमेशा से एक अस्तित्व तथा तीन भिन्न जनों में है। तीनों जनों के कार्य अलग-अलग है लेकिन उनके कार्यों, विचारों तथा योजनाओं में एकता है। हम परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र तथा परमेश्वर पवित्र आत्मा को अलग नहीं कर सकते हैं। पिता, पुत्र, पवित्र आत्मा एक परमेश्वर हैं। 


बाइबल पर आधारित तथ्य- परमेश्वर एक है, वह अद्भुत परमेश्वर है, एक अस्तित्व में हैं, इस बात को हम व्यवस्थाविवरण उसके 6:4 में देखते हैं कि मूसा इस्राएलियों को बताता है कि- यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है। उत्पत्ति 1:26-27 में हम ईश्वरीय एकता को स्पष्ट रूप से देखते हैं। नये-नियम में हम 2 तीमुथियुस 2:5 में देखते हैं कि परमेश्वर एक है और परमेश्वर तथा मनुष्यों के बीच में मध्यस्थ भी एक है अर्थात् यीशु मसीह। हम कुलुस्सियों में 1:15-16 में देखते हैं कि यीशु मसीह के द्वारा सारे संसार की सृष्टी हुई है, वह ही सब पर प्रधान है। ये पद हमें ईश्वरीय एकता तथा यीशु मसीह के परमेश्वर के बारे में बताते हैं। पवित्र आत्मा के परमेश्वरत्व को हम मरकुस 1:10-11 में तथा प्रेरितों के काम 2 अध्याय में पाते हैं जिसके बारें में यीशु मसीह अपने चेलों से प्रतिज्ञा करते हैं।


परमेश्वर के सिद्धांत के लिए इसके महत्व को प्रदर्शित करना- परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र, परमेश्वर पवित्र आत्मा के ईश्वरीय एकता में होना जरूरी है क्योंकि परमेश्वर  सादगीय परमेश्वर है जिसे हम तीन अलग-2 भागों में नहीं बाँट सकते हैं, तीनों व्यक्ति हमेशा से साथ में हैं। हम देखते हैं कि परमेश्वर तीन व्यक्तियों में है लेकिन तीनों की इच्छाएं समान है, परमेश्वर की अलग-2 तीन इच्छाएं नहीं है। तीनों जन एक ही स्वभाव में, ईश्वरीय एकता में है। परमेश्वर एक है लेकिन ईश्वरीय एकता के तीनों जनों के कार्य अलग-2 है, उनके कार्य करने के तरीके में क्रम है लेकिन ईश्वरत्व में तीनों बराबर है जो ईश्वरीय एकता को दिखाता हैंं। तीनों व्यक्ति अपने कार्य के द्वारा अलग-2 जाने जाते हैं लेकिन उनमें एकता है। परमेश्वर का यह स्वभाव एक रहस्य है। 


यह सिद्धांत कलीसिया के लिए कैसे उपयोगी है- ईश्वरीय एकता का यह सिद्धांत कलीसिया की सहायता करता है कि परमेश्वर अस्तित्व में एक है लेकिन उस अस्तित्व में तीन भिन्न व्यक्ति है। एक विश्वासी के उद्धार की प्रक्रिया में तीनों व्यक्तियों का पूरा योगदान है। यह सिद्धांत कलीसिया को और भी समर्पण के साथ परमेश्वर की आराधना करने में तथा परमेश्वर से प्रार्थना करने के तरीके में बहुत सहायता करता है। यह कलीसिया को झूठी शिक्षा से बचाता है क्योंकि बहुत से लोग परमेश्वर के केवल एक अस्तित्व को और एक ही व्यक्तित्व को स्वीकार करते हैं, वही एक व्यक्ति तीन रूप लेकर अलग-2 समय में विश्वासी के उद्धार में कार्य किया है- यह परमेश्वर, पहले परमेश्वर पिता था, फिर वह पुत्र बना और फिर उसने पवित्र आत्मा का रूप लिया है, जो कि यह गलत है तथा यह परमेश्वर के अस्तित्व के विरोध में है। इसलिए यदि कलीसिया ईश्वरीय एकता के सिद्धांत को जानती है तो यह इन बातों में नहीं फँसेगी। 




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