संत अगस्टीन की पुस्तक अंगीकार से शिक्षाएँ तथा संक्षिप्त परिचय
आप सब इस बात को जानते हैं कि हम सब के जीवन में पाप होता है, कई बार हम अंजाने में पाप करते हैं तथा कई बार जान-बूझकर करते हैं लेकिन हम सब के लिए बड़ी बात या कठिन बात अपने पाप को स्वीकार करने में होती है। यद्दपि परमेश्वर का वचन 1 यूहन्ना 1:8-9 हमें बताता है कि हम अपने पाप को अंगीकार करें और उसे छोड़ दे तो हमारे पापों की क्षमा होती है लेकिन फिर भी हमारे लिए यह करना कठिन होता है। आज हम उस व्यक्ति के बारें में बात करने जा रहे हैं जिसने बहुत सारे पाप जान-बूझ कर किए लेकिन उसने परमेश्वर पवित्र आत्मा की सहायता से अपने पाप को स्वीकार किया और उसे छोड़ दिया। उस व्यक्ति का नाम अगस्टीन है। अगस्टीन अपनी पुस्तक कन्फेशन में इस बात का अंगीकार करते हैं।
अगर हम बड़े चित्र में इस पुस्तक के बारे में बात करे तो हम इसमें देखते हैं कि अगस्टीन इस पुस्तक में अपने जीवन के बारे में बताने की कोशिश करते हैं कि कैसे अगस्टीन का जीवन परिवर्तन हुआ, कैसे वह मसीही बने। इस अंगीकार की पुस्तक में लेखक विशेषकर अपने आत्मिक यात्रा की बात करते हैं कि कैसे उन्होंने उद्धार को प्राप्त किया। अगस्टीन इस पुस्तक में अपने संघर्षों जैसे कामुकता, बौद्धिक घमण्ड को स्वीकार करते हैं, तथा वह इस बात पर खेद जताते हैं कि कैसे उन्होंने पापपूर्ण तथा अनैतिक जीवन जीया। एक विचित्र बात इस पुस्तक में हम देखते हैं कि उन्होंने परमेश्वर से प्रार्थना किया कि- परमेश्वर हमें शुद्ध(पवित्र) करिए तथा संयम का जीवन दीजिए लेकिन अभी नहीं। वह इस बात से भी खेदित होते हैं कि उन्होंने Manichians का तथा ज्योतिष-विज्ञान का अनुसरण सत्य को खोजने में किया।
अगस्टीन के जन्म के बारे में हम देखते हैं कि उनका जन्म 354 AD में थगास्टे शहर में हुआ था। अगस्टीन की माता एक मसीही थी लेकिन पिता गैर-मसीही थे। अगस्टीन ने अपनी पढ़ाई कार्थज़ शहर में की। वह एक अच्छे दार्शनिक थे तथा वाक्पटुता में बहुत ही निपुण थे। अगस्टीन का बचपन यद्दपि मसीही शिक्षा से प्रभावित था लेकिन फिर भी उसने मसीह को स्वीकार नहीं किया था। जब वह कार्थज़ में अन्य लड़कों के साथ थे तो वह उन्हीं के समान अपना जीवन यौन संबंधी जैसे पापों में व्यतीत करते थे, वह बहुत लम्बे समय तक एक जवान औरत के साथ विवाह से पहले ही संबध में थे। अगस्टीन बहुत ही ज्यादा कामुकता से संघर्ष करते थे।
अगस्टीन के जीवन में एक आश्चर्यचकित करने वाली घटना मिलान में होती है। जब वह मिलान में थे, तो एक दिन वह बगीचे में बैठे हुए थे तो उसने एक आवाज़ को सुना- उठो और पढ़ो। अगस्टीन को रोमियों 13:13-14 पढ़ने के लिए कहा गया, जहाँ पर बताया गया है कि हम कामुकता तथा यौन संबंधों में अपना जीवन न जीए। इस घटना के बाद अगस्टीन ने अपना जीवन परमेश्वर के लिए समर्पित कर दिया। इस प्रकार अगस्टीन का ह्रदय परिवर्तन 386 AD में हुआ। अगस्टीन ने कई सारी पुस्तकें लिखी जैसे- Confessions, City of God, On the Trinity आदि कई पुस्तकें लिखी। अगस्टीन 430 AD में जब वह 76 साल के थे तो उनकी मृत्यु हो गई।
अब हम कुछ बातों को देखेंगे जो इस पुस्तक को समझने में सहायता करते हैं-
1. What is the basic message that the author is trying to communicate?
इस अंगीकार में अगस्टीन अपने जीवन के बचपन से लेकर के 35 साल तक उनके जीवन में क्या हुआ। उन बातों को मुख्य रूप से इसमें वह बताने की कोशिश करते हैं। वह इस पुस्तक में विशेषकर पाप, सताव, सत्य, बुद्धि और ज्ञान, कमज़ोरी, कामुकता और घमण्ड के बारे में बताना चाहते हैं।
वह इसमें यह भी बताना चाहते हैं कि परमेश्वर तथा मनुष्यों के बीच में क्या संबंध है- जब हम इस पुस्तक के पहले भाग को पढ़ते हैं तो हम देखते कि अगस्टीन एक मुख्य बात इसमें कहते हैं कि- “परमेश्वर आप चाहते हैं कि हम आप की महिमा करते हुए आप में आनंद प्राप्त करें क्योंकि आपने हमें अपने लिए बनाया है, इसलिए हमारा ह्रदय तब तक बेचैन है जब तक यह आप में आराम न पाए।”
2. What problem is he trying to address?
अगस्टीन इस पुस्तक में पाप की समस्या को संबोधित कर रहे हैं कि कैसे मसीह में आने से पहले उनका जीवन पाप से लिप्त था। जब हम इस पुस्तक को पढ़ रहे थे तो हमने देखा कि अगस्टीन जान-बूझकर पाप करते थे। वह अपने कामुकता के पाप के संघर्ष को बताते हैं कैसे उन्होंने कामुकता के पाप में अपना जीवन जीया, उनके पाप की सीमा चरम थी। एक बार वह अन्य लड़कों के साथ अपने निकट के बगीचे से सिर्फ अनाज्ञाकारिता के लिए नाशपाती तोड़ते हैं। उनके पाप की सीमा हम देखते हैं कि उन लोगों ने नाशपाती केवल खाने के लिए नहीं तोड़ा लेकिन उनका उद्देश्य फेंकने के लिए, वह भी ढेर सारे। इसलिए अगस्टीन कहते हैं कि जब परमेश्वर का अनुग्रह एक व्यक्ति के जीवन में होता है तो व्यक्ति चाहे जितने बड़े पाप में हो, उसका जीवन परिवर्तित होता है। वह इस बात को स्पष्ट तरीके से बताते हैं कि परमेश्वर के बिना हम सत्य को नहीं जान सकते हैं। मनुष्य चाहे जितना ही बुद्धिमान क्यों न हो जाए लेकिन वह अपने आप को बचा नहीं सकता है। वह केवल और केवल परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा ही बचाया जा सकता है।
3. How well does the author do in communicating his message?
हम इस पुस्तक में देखते हैं कि अगस्टीन अपने संदेश को तथा अपनी बातों को बहुत ही अच्छे से बताता है। वह अपने जीवन के बारे में बताते है कि कैसे उनका जीवन मसीही में बनने से पहले था और जब वह मसीही बन गये तो उनका जीवन कैसे था। सबसे बड़ी बात यह कि उसने जो कुछ मसीही बनने से पहले किया, उसको स्वीकार करते हैं तथा उसको छोड़ देते हैं। इस प्रकार वह अपने संदेश को बुद्धिमानी के साथ वचन के अनुसार बताते हैं
4. Does he support his thesis well?
वह अपनी बातों को स्पष्ट तरीके से बताते हैं तथा उसका समर्थन वचन के आधार पर करते हैं कि कैसे उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया, तथा पाप से छुटकारा कैसे हो सकता है? इस बात को स्पष्ट तरीके से बताते हैं किस प्रकार उनका जीवन परिवर्तन हुआ- वह वचन के अनुसार बताते हैं कि जब पवित्र आत्मा ने उनके ह्रदय में कार्य किया तो उसका जीवन बदल गया। यह बात बताती हैं कि परमेश्वर पवित्र आत्मा ही लोगों के जीवन को बदलता है, जब तक परमेश्वर न चाहे एक व्यक्ति अपने पापों से नहीं बचाया जा सकता है। वह अपनी बातों को समझाने के लिए वचन का प्रयोग करते हैं, जैसे परमेश्वर प्रेम है इस बात को समझाने के लिए वे वचन से 1 यूहन्ना 4:16 का प्रयोग करते हैं तथा त्रियेकता को समझाने के लिए 1 यूहन्ना 4:15 का प्रयोग करते हैं। वह बताते हैं कि जब हम अपने पापों को मान लेते हैं तो हमारे पापों की क्षमा होती है, यह बात वह 1 यूहन्ना 1:8-9 से बताते हैं।
5. What are his main theological points?
अगस्टीन ने कई सारे महत्वपूर्ण ईश्वर-वैज्ञानिक बिंदुओं को इस अंगीकार में बताएँ हैं। इस अंगीकार में सबसे पहले वह बताते हैं कि परमेश्वर ने संसार को अपनी महिमा के लिए बनाया है। परमेश्वर को यद्दपि किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं है लेकिन फिर भी उसने मनुष्य को बनाया कि वह उसकी महिमा करे तथा अपने जीवन को उसकी अधीनता में जीए। उसके बाद हम देखते हैं कि अगस्टीन बताते हैं कि जब तक पवित्र आत्मा एक व्यक्ति के जीवन में कार्य न करें वह मसीह में विश्वास नहीं कर सकता है। अगस्टीन इस बात को स्पष्ट तरीके से अपने अंगीकार में कहते है कि जब पवित्र आत्मा ने उनके जीवन में कार्य किया तब ही वह मसीही बने। उससे पहले वह सत्य की खोज कर रहे थे लेकिन उसमें सफल नहीं हुए। यह दिखाता है कि केवल परमेश्वर ही लोगों के ह्रदय को बदलता है।
अगस्टीन ही वह पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने मूल पाप (Original Sin) के बारे में बताया कि कैसे आदम के पाप के द्वारा सभी पापी है। अगस्टीन बताते हैं कि यह पाप आदम के बाद जो व्यक्ति हुए उनमें यौन-संबंधों के द्वारा फैलता गया। आज सभी व्यक्ति जो इस संसार में पैदा हुए- यीशु मसीह को छोड़कर-आदम के पाप के कारण पापी है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को उसके पापों से बचाये जाने तथा उद्धार की आवश्यकता है।
अगस्टीन ने बताया कि एक विश्वासी का व्यक्तिगत रूप से मसीह में विश्वास ठीक है लेकिन उस व्यक्ति को कलीसिया के लोगों के साथ जुड़े रहना बहुत जरूरी है। अगस्टीन ने विश्वासियों को वचन के आधार पर कलीसिया से जुड़े रहने के लिए बताया। उसका यह विचार आज भी महत्वपूर्ण है जैसे उस समय था।
अगस्टीन ने बताया कि परमेश्वर प्रेम है, परमेश्वर त्रियेक अर्थात् पिता, पुत्र पवित्र आत्मा में है। अगस्टीन ने यह बात कि परमेश्वर प्रेम है, उसको अपने दिमाग से नहीं बताया लेकिन इसे उसने 1 यूहन्ना 4:15 से बताया तथा त्रियेकता को उसने यूहन्ना 1:1 तथा 14 के अनुसार बताया। अगस्टीन ने कहा कि परमेश्वर प्रेम है, यह बात तब तक सच नहीं हो सकती है जब तक कि परमेश्वर के साथ उसके अस्तित्व में कोई प्रेम करने वाला न हो। बिना त्रियेक परमेश्वर के, परमेश्वर प्रेम हैं इस बात को हम नहीं समझ सकते हैं।
अगस्टीन ने इस बात को बताया कि मनुष्यजाति पाप में है तथा वह परमेश्वर के साथ बलवा करती है इसलिए वह अपने आप को नहीं बचा सकती है, केवल वे मसीह में बचाएं जा सकते हैं। मनुष्य अपने पापों में मरा हुआ है इसलिए उसे आवश्यक है कोई उसे बचाए। यीशु मसीह ने अपनी मृत्यु के द्वारा लोगों को बचाया है, अब यदि जो भी व्यक्ति यीशु मसीह में विश्वास करता है, वह बचाया जा सकता है। अगस्टीन इस बात पर भी ज़ोर देते है कि जितने भी व्यक्ति परमेश्वर की योजना में बचाए गए हैं वे परमेश्वर पर अवश्य ही विश्वास करेंगे चाहे वे कितने गंभीर पाप क्यों न किए हो। अगस्टीन परमेश्वर के पहले से निर्धारित योजना पर भरोसा करते थे लेकिन उन्होंने इस बात को भी बताया है कि हम भाग्यवाद(Fatalism) में विश्वास नहीं करते हैं। परमेश्वर ने जो मसीह में ठहराया है, वह होगा ही होगा लेकिन हमें अपनी ज़िम्मेदारी से नहीं मुकरना है।
6. What Biblical Texts does he use to support his point(s)?
अगस्टीन अपनी बातों को समझाने के लिए कई बाईबल के खण्डों तथा पदों का उपयोग करते हैं- परमेश्वर प्रेम है, इस बात को समझाने के लिए 1 यूहन्ना 4:16 का प्रयोग करते हैं तथा मत्ती 22:37-39 परमेश्वर के प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए करते हैं। त्रियेकता को समझाने के लिए 1 यूहन्ना 4:15 तथा यूहन्ना का सुसमाचार 1:1 का प्रयोग करते हैं। अगस्टीन के कन्फेशन में हम कई बार लूका के तथा यूहन्ना के सुसमाचार का प्रयोग देखते हैं। जब वह अपना क्रूस उठाकर चलने की बात करते हैं तो वह मत्ती 11:29 का प्रयोग करते हैं। परमेश्वर की पूर्व-निर्धारित योजना को समझाने के लिए वह इफिसियों 1:4 का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि कई बाईबल के खण्डों को अगस्टीन अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए करते हैं।
7. Is it valid Biblically/theologically? Defend your position, why or why not?
अगस्टीन अपनी बातों को समझाने के लिए जब बाईबल के खण्डों को उपयोग करते हैं तो वह सही तरीके से संदर्भ को ध्यान में रखते हुए वचनों को उपयोग करते हैं। वे अपनी बात को समझाने के लिए वचन को तोड़-मरोड़ कर प्रदर्शित नहीं करते हैं लेकिन वे सही तरीके से वचन की व्याख्या तथा उसका उपयोग करते हैं।
8. What further questions does this bring up in your mind?
1. क्या प्रत्येक परमेश्वर के लोगों को अगस्टीन की तरह लोगों के सामने अपने पाप को अंगीकार करना है जिस प्रकार अगस्टीन ने किया?
2. एक व्यक्ति अपने पापों को लोगों के सामने स्वीकार करने से क्यों डरता या शर्माता है?
9. What are ways that this is helpful to you in your personal life?
अगस्टीन ने इस बात पर बहुत ज़ोर दिया कि एक व्यक्ति का परमेश्वर के साथ व्यक्तिगत संबंध बहुत ही जरूरी है लेकिन साथ ही साथ उसका संबंध एक-दूसरे के साथ महत्वपूर्ण है।
अगस्टीन ने परमेश्वर के वचन के महत्व पर बहुत ज़ोर दिया क्योंकि हम देखते हैं कि उनका जीवन परमेश्वर के वचन के द्वारा तथा पवित्र आत्मा के माध्यम से बदला। जब अगस्टीन ने परमेश्वर के वचन रोमि. 13:13-14 पढ़ा तो हम देखते है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा की सहायता से उसका जीवन परिवर्तन हुआ। हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम वचन को दिन-प्रतिदिन पढ़े, उस पर मनन करें तथा उसको अपने ह्रदय में संजोएं रखे क्योंकि परमेश्वर का वचन हमें मसीह में जीवन जीनें के तरीके को बताता है।
अगस्टीन के जीवन में हम देखते हैं कि उसने अपने पापों को स्वीकार किया तथा उसे छोड़ दिया। हमारे लिए सीखने की बात है कि जब हम अभी पाप करते हैं तो हमें अपने पापों को मानना है तथा उन्हें छोड़ना है। हमारे पास वचन से 1 यूहन्ना 1:8-9 से इस बात का आश्वासन है कि हम अपने पापों को मान ले तथा उसे छोड़ दें तो परमेश्वर हमारे पापों को क्षमा करता है।
अगस्टीन ने इस बात पर विश्वास किया तथा बताया कि एक मसीही को सिर्फ हाथ पर हाथ रखे बैठे नहीं रहना और घटनाओं को होने देना है, परमेश्वर के साथ हमारे संबंध का अर्थ है कि- हम उसके साथ जीएं, उसके विचारों को प्रकट करें, यीशु मसीह के मस्तिष्क का अनुसरण करें, और उसकी इच्छाओं को पवित्र आत्मा के सामर्थ्य के द्वारा प्रतिदिन करें क्योंकि हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक, प्रत्येक समय परमेश्वर से सम्बंधित है।
हम विश्वासी यीशु मसीह में बचाये गए है, हमने अपने उद्धार के लिए कुछ नहीं किया है। परमेश्वर ने हमें मसीह यीशु में अपने अनुग्रह के द्वारा बचाया है(1 इफिसियों 2:8-9), इसलिए अब हमको अपने कामों पर, गुणों पर नहीं भरोसा करना है लेकिन हमें केवल मसीह के कार्यों पर भरोसा करना है।
10. How will this work help you in your ministry in India?
भारत में हमारे लिए अगस्टीन की बात, जो परमेश्वर के वचन पर आधारित है कि परमेश्वर का आत्मा लोगों के ह्रदय को बदलता है, यह बात आज हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ह्रदय को बदलने का काम परमेश्वर का है न कि मनुष्य का। भारत में कई बार लोग स्वयं दूसरों के ह्रदय को बदलना चाहते हैं और उसे मसीह में लाना चाहते हैं और जब वे नहीं कर पाते हैं तो वे अपनों कार्यों को लेकर परेशान तथा निराश होते हैं। इसलिए हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम परमेश्वर को अपना कार्य करने दें तथा हमें जो कार्य सुसमाचार सुनाने को मिला है उसे विश्वासयोग्यता से करें।
अगस्टीन का जीवन हमें इस बात में उत्साहित करता है कि परमेश्वर बड़े से बड़े पापी को बचाता है। यह हमारे लिए सुसमाचार को सुनाने में प्रोत्साहन है कि हम प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह जैसा हो, उसको हम सुसमाचार सुनाए क्योंकि परमेश्वर लोगों के ह्रदय को बदलता है तथा वह अपने चुने हुओं को अपने पास बुलाता है, इसलिए हमें परमेश्वर के अनुग्रह को लोगों को अवश्य बताना है।
अगस्टीन ने वचन के आधार पर लोगों को कलीसिया में जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहित किया, हमारे लिए आज आवश्यक है कि हम लोगों को वचन के आधार पर, खरी शिक्षा वाली कलीसिया से लोगों को जुड़ने के लिए प्रेरित करें तथा खरी शिक्षा का अनुकरण करने के लिए विश्वासियों को प्रेरित करें।
अगस्टीन के जीवन से हम सीख सकते हैं कि चाहे हम पासवान हो, या विश्वासी हो हम सब को जब हम पाप करते हैं हमें अपने पापों को स्वीकार करना है। हम भारत में कई सारे प्रचारकों को देखते हैं कि वे पाप में जीवन व्यतीत करते हैं लेकिन वे अपने पापों को स्वीकार नहीं करते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि यदि हम अपने पापों को बतायेंगे तो हमारा आदर घट जायेगा, इस बात को सोचकर विश्वासी लोग दोहरा जीवन जीतें हैं लेकिन परमेश्वर का वचन हमें बताता हैं कि हमें अपने पापों को मानना है तथा उन्हें छोड़ना है। अगस्टीन का जीवन हमारे लिए उदाहरण है। हमें अपने पापों के लिए परमेश्वर के अनुग्रह पर भरोसा करना है
अगस्टीन ने अपने पापों को परमेश्वर के समक्ष अंगीकार किया लेकिन उसने मनुष्यों के सामने भी अपने पापों को माना। आज हमारे लिए परमेश्वर के सामने अपने पापों को मानना आसान है लेकिन मनुष्यों के सामने मानना कठिन है। इसलिए हमारे लिए आवश्यक है कि हम भी अपने पापों को परमेश्वर के सामने तथा लोगों के सामने मानें क्योंकि परमेश्वर का वचन हमें बताता है कि हमारा संबंध पहले परमेश्वर से तथा उसके बाद लोगों के साथ सही होना अनिवार्य है अन्यथा हम पाखण्ड का जीवन जी रहे होंगे।
इस प्रकार हम अगस्टीन के जीवन से कुछ महत्वपूर्ण बातों को देखते हैं।
अमित कुमार
सेमिनरी छात्र
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